Tuesday, December 16, 2025

ज्योतिषाचार्य नूपुर : ज्ञान, अभ्यास और आध्यात्मिक ऊर्जा की यात्रा

 



मध्य प्रदेश की रहने वाली नूपुर की जीवन-यात्रा प्रेरणा से भरी हुई है। पेशे से वह पहले एक शिक्षिका थीं। पढ़ाना उनका कर्म था और विद्यार्थियों को सही दिशा देना उनका धर्म। लेकिन जीवन में कभी-कभी कोई नई सूचना, कोई नया ज्ञान हमारे भीतर छुपे सपनों को जगा देता है। नूपुर के साथ भी ऐसा ही हुआ।

एक दिन उनका संपर्क ज्योतिष से जुड़ी खबरों और लेखों से हुआ। यह विषय उन्हें इतना आकर्षित करने लगा कि उन्होंने इसे गहराई से समझने का निर्णय लिया। उन्होंने विधिवत ज्योतिष का कोर्स जॉइन किया और नियमित अध्ययन के साथ पूरे समर्पण से उसे पूर्ण किया।

नूपुर बताती हैं कि बचपन में उनका सपना डॉक्टर बनने का था। जीवन की परिस्थितियों में वह सपना अधूरा रह गया, कहीं न कहीं एक खालीपन था। लेकिन जब उन्होंने ज्योतिष को अपनाया, तो उन्हें लगा कि वही अधूरा सपना एक नए रूप में पूरा हो गया है—लोगों के जीवन की समस्याओं का समाधान करना, उन्हें मार्गदर्शन देना और मानसिक शांति देना।

“ज्योतिषाचार्य” और “शास्त्री” की उपाधि उन्हें सम्मान देती है, लेकिन वह साफ कहती हैं कि केवल डिग्री या उपाधि पर्याप्त नहीं होती।
उनके शब्दों में—
“असली ज्ञान अभ्यास से आता है। जब हम निरंतर प्रैक्टिस करते हैं, तभी हम विशेषज्ञ बनते हैं।”

हस्तरेखा शास्त्र, ग्रह-नक्षत्रों की गणना, गणितीय ज्योतिष और समय की सूक्ष्म गणनाएँ—ये सभी ज्योतिष के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। नूपुर मानती हैं कि हर समस्या का समाधान संभव है, बस सही मार्ग और सही ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

उनके अनुसार, सर्वोच्च शक्ति से जुड़ना ही सबसे बड़ा उपाय है। सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ने के कई मार्ग हो सकते हैं—प्रार्थना, अच्छे कर्म, या सेवा। कभी 21 दिनों तक गाय को हरा चारा देना, कभी ब्राह्मणों को भोजन कराना, तो कभी जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र देना—ये सभी कर्म अनजाने में भी हमारी ऊर्जा को सकारात्मक बना देते हैं।

नूपुर कहती हैं कि यह सब कोई नई बात नहीं, बल्कि सदियों पुरानी अनुभूतियों और अनुभवों का सार है—
“अच्छा करो, अच्छा बनो, और अच्छा ही पाओ।”

आज नूपुर ब्रह्माकुमारीज़ से भी जुड़ी हुई हैं और एक आध्यात्मिक रूप से समृद्ध जीवन का आनंद ले रही हैं। ज्योतिष और अध्यात्म का यह सुंदर संगम उनके जीवन को संतुलन, शांति और संतोष से भर रहा है।

नामी : शांति, शक्ति और संकल्प की कहानी


भोपाल—झीलों का शहर—यहीं रहती है नामी। एक सामान्य-सी दिखने वाली, पर भीतर से असाधारण कामकाजी महिला। आज वह नौकरी भी कर रही है, ऑनलाइन बिज़नेस भी संभाल रही है और परिवार को प्रेम से जोड़े हुए है। लेकिन यह यात्रा इतनी सहज नहीं थी।

एक समय था जब नामी घर पर ही रहती थी। उसका अधिक समय ब्रह्माकुमारीज़ के ज्ञान, मेडिटेशन और आत्मचिंतन में बीतता था। वह भीतर से शांत थी, पर बाहर की दुनिया को यह शांति “काम” नहीं लगती थी। एक दिन उसकी सास ने कटु शब्दों में कहा,
“तुम कुछ करती ही नहीं हो, बस बीके-ज्ञान, बीके-ज्ञान… इसका क्या उपयोग?”

ये शब्द नामी के दिल में गहरे उतर गए। वह जानती थी कि ज्ञान उसे अंदर से मजबूत बना रहा है, लेकिन वह यह भी समझ गई कि केवल भीतर की शक्ति काफी नहीं—उसे कर्म में भी लाना होगा।

उसी दिन उसने निर्णय लिया। शांति को शक्ति बनाकर आगे बढ़ने का।
नामी ने नौकरी शुरू की, साथ ही घर से ऑनलाइन बिज़नेस भी। शुरुआत आसान नहीं थी, पर धैर्य था, अभ्यास था और ऊपर वाले पर भरोसा था।

नामी अक्सर मुस्कुराकर कहती है,
“जब मैं ब्रह्माकुमारीज़ से जुड़ी, तो मुझे जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर मिले। एक अजीब-सी तृप्ति मिल गई—कंटेंटमेंट मिल गया।”

उसका पसंदीदा गीत जैसे उसके जीवन का मंत्र बन गया—
‘ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्किलें बड़ी हैं,
मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है।’

नामी का विश्वास है कि हर इंसान को जीवन के उत्तर मिल सकते हैं—बस थोड़ा धैर्य रखना पड़ता है।
वह कहती है,
“शांति का रास्ता इंतज़ार कर रहा है, और ईश्वर की कृपा पहले से ही आपके साथ है।”

भोपाल से उसका गहरा लगाव है—प्रकृति, वातावरण, इंसानियत—सब उसे प्रिय हैं। वह हर दिन एक ही प्रार्थना करती है,
“सबका कल्याण हो।”

आज नामी कई महिलाओं को प्रेरित करती है। वह कहती है कि आज के समय में घर से नौकरी, ऑनलाइन बिज़नेस या कॉल सेंटर का काम एक अच्छा विकल्प है—बस ज़रूरत है धैर्य, अभ्यास और सकारात्मक सोच की।

नामी की कहानी यही सिखाती है—
आध्यात्मिकता जीवन से भागना नहीं,
बल्कि जीवन को सुंदर ढंग से जीने की शक्ति है।

Sunday, December 14, 2025

Pay Attension


Hi, this is Ram, your unknown but well-known friend. I think like you and deal with the same issues that you deal with on a daily basis, so I know you better. Today, I made a promise to myself that I would never be angry with anyone or in any circumstance. Suddenly, someone started copying me and acting like I'm the best, so I became angry inside again. However, today, because I paid attention, I was in control and adjusted myself with spiritual knowledge, which gave me peace in my grief, and after a while I was normal.

1️⃣ Daily Affirmation (Morning – 30 seconds)

Read or say this slowly, with feeling:

“I am a peaceful soul.
Anger is not my nature.
Situations may change, people may change,
but my inner state remains calm and dignified.
I respond with awareness, not habit.”

Say it once with eyes open, once with eyes closed.


2️⃣ Moment-of-Anger Self-Talk (Use Immediately)

The moment you feel irritation rising, say inside:

“I am noticing this, so I am already bigger than it.”

Then add:

“This feeling is temporary.
My peace is permanent.”

Take one slow breath, and slightly relax your shoulders.
That physical relaxation helps the mind reset.


3️⃣ Night Reflection (2 minutes before sleep)

Ask yourself gently (no judgement):

  • Where did I remain stable today?

  • Where did I notice a reaction but choose awareness?

  • What did I learn about myself today?

End with this thought:

“Today, I moved one step closer to my real self.”


One Important Truth (Please remember this)

Spiritual strength does not mean anger never appears.
It means anger no longer controls your actions.

Today, you were in the driver’s seat.
That is inner victory.

Thursday, December 11, 2025

*शीर्षक – नया वर्ष 2026*

 

 *गीत के बोल– जन्म जन्म का साथ है तुम्हारा हमारा*

1–एक-एक दिन गुजर गया।

ये साल पुराना–ये साल पुराना।

आने वाले नए वर्ष का स्वागत सुखद सुहाना।

एक-एक दिन गुजर गया।

ये साल पुराना–ये साल पुराना 


2–एक एक पल बीता कोई जान ना पाया।

कुछ सुख दुख की लडिया 

ये सब प्रभु उनकी माया।

उनके एक इशारे से जग जाए सारा जमाना।

एक-एक दिन गुजर गया 

ये साल पुराना–ये साल पुराना।


3–जाने वाले साल तुम्हारा हम स्वागत करते हैं।

तुम कभी नहीं आओगे हम दिल से नमन करते हैं।

आने वाले का भी स्वागत करता रहा जमाना।

एक-एक दिन गुजर गया

ये साल पुराना–ये साल पुराना।


4–आज खुशी का दिन है हम सब नाचे गाए।

एक को करें विदाई एक को पास बुलाए।

याद करें भगवान को जिसने बनाया नया पुराना।

एक-एक दिन गुजर गया

ये साल पुरान—यह साल पुराना।

आने वाले नए वर्ष का स्वागत सुखद सुहाना।

एक-एक दिन बदल गया

ये साल पुराना– ये साल पुराना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, December 9, 2025

*शीर्षक –द्वेष की भावना*

 

1–यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।

वह एक दूसरे के ही पीछे पड़े हैं

है नफरत भरी द्वेश की भावना है।

खुले आम इज्जत को खींचे पड़े है 


2–मंदिर या मस्जिद कोई धर्मशाला।

हो स्कूल कॉलेज या पाठशाला।

वो भगवान के नाम को भी न छोड़ें।

बने हैं पुजारी और नीछे पड़े हैं।

यहां एक दूजे के पीछे पड़े हैं।


3–हो व्यवसाय या राजनीति की गलियां।

बाजारों में बिकती है फूलों की कलियां।

हो बेला चमेली गुलाबों की डाली।

दुकानें खुली है और बैठे हैं माली।

बाजारों में सब कुछ खुलेआम बिकता।

समाजों में अब कितने छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं ।


4–वह अंजान कुछ भी नहीं जानते है।

वो भगवान को भी नहीं मानते हैं।

वो अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं।

नहीं कुछ पता है कहां जा रहे हैं।

मिला आईना जब वह चेहरा को देखा।

वो देखा की अनगिनती छींटे पड़े हैं।

यहां एक दूजे को नीछे पड़े हैं।

नफरत भरी देश की भावना है। 

खुलेआम इज्जत को खींचे पड़े हैं। 

यहां एक दूजे के नीछे पड़े है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, December 4, 2025

*शीर्षक– मन में विचार की गंगा*


1–मन में विचार की गंगा हो।

सत्संग समागम धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।

बुद्धि में निखरता आएगी।

जब नित्य सत्संग की राह चलो। 

सूरत मूरत बस जाएगी।

जब बांह में लेकर बाह चलो।

मर्यादित बोल तुम्हारा हो।

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

जब खान पान सात्विक रसना हो।

तब मन में उजियारा हो।

नित्य ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


2–अंधियारे में क्यों भटक रहे हो।

ज्ञान का दीप जला डालो।

उस ज्ञान का सागर परमपिता से

कुछ तो योग लगा डालो।

वो निराकार है दया का सागर

वो दीन बंधु दुख हरता है।

वो जग का पालनहार पिता 

वो जग का पालन करता है।

हो सत्य अहिंसा परम धर्म का

दिल में तुम्हारे नारा हो

मर्यादित बोलो तुम्हारा हो

शब्दों में ज्ञान की धारा हो।

नित ज्ञान का जब स्नान करो।

प्रभु प्रेम श्रवण को प्यार हो।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, December 3, 2025

शीर्षक –मानव की दुर्दशा


1–आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।

आज अपने आप में ही मस्त है।

आज अपनी जिंदगी से त्रस्त है।

है गृहस्ती में मगर वह ग्रस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


2–आज टेंशन से भरी है जिंदगी।

रोज करता है प्रभु की बंदगी।

दौड़ता दिन-रात है और प्रस्त है। 

मंजिलों से दूर है और त्रस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


3– हर जगह विस्तार करता जा रहा।

आपसी टकरार करता जा रहा।

स्वार्थ की अंधी भरी इस जिंदगी में।

रात दिन रफ्तार करता जा रहा।

धन जुटाने में वो कितना व्यस्त है।

आपसी मतभेद में वो ग्रस्त है। 

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


4– जिंदगी की इस अंधेरी दौड़ में।

एक अपनी आशियाना ठौर में।

कुछ बचाने में यूं शायद व्यस्त है।

कुछ लुटाने में यू शायद मस्त है।

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है।


5– जिंदगी जीने का मतलब भूल कर।

मानवी संदर्भ को भी भूल कर।

गुनगुनाते है अंधेरी रात में।

मौत को भी ले लिया है हाथ में।

डर नहीं जीने ना मरने की उसे।

वो तो अपनी मस्तियों में मस्त है। 

आज मानव बेवजह: ही व्यस्त है। 

आज अपने आप में ही मस्त है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, December 1, 2025

*शीर्षक – क्या गलत बात है??*


1–चोर को चोर कहना गलत बात है।

शांति में शोर करना गलत बात है।

चार दिन का है मेहमान हर आदमी 

खुद को कमजोर कहना गलत बात है।


2–मित्र से दूर जाना गलत बात है। 

पितृ को भूल जाना गलत बात है।

चित्र हो आपका गोरा या सावला।

चरित्र को भूल जाना गलत बात है।


3–आपसी बैर रखना गलत बात है।

ईर्ष्या द्वेष रखना गलत बात है।

भाई जैसी है कोई अमानत नहीं।

भाई से दूर रहना गलत बात है।


4– यम नियम और संयम से चलते रहो।

जिंदगी जीने का तो यही सार है।

जिंदगी दी है प्रभु ने ये सौगात में।

प्रभु को दिल से बुलाना गलत बात है ।


5–खुद को देखो ना देखो किसी की तरफ।

खुद के जीवन पे अपना ही अधिकार है।

यदि किसी की कमी पर नजर जाती है।

यह नजर का भी जाना गलत बात है।



*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –अपराध की दुनिया*

 

1–अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।

ना जी सकोगे सुकून से ना मर सकोगे।

झूठ की दुनिया अंधेरी रात है। 

सत्यवानी बोलकर भी क्या करोगे।


2– सत्य में ही जीत है सब ने सुना था।

अब सत्य हर पल हारता है क्या करोगे।

झूठ वाला जीत करके हस रहा है।

सत्यवानी बोलकर कर भी क्या करोगे।


3–है बदलती अब समा शमशान है।

आदमी अब सत्य से अनजान है।

झुंठ हावी हो रहा है सत्य पर।

सत्य का दीपक जलाकर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।


4–अब सहन करना ही मेरी जिंदगी है।

जिंदगी में प्यार ही तो बंदगी है।

बंदगी ही जिंदगी की शान है।

नफरतों का बीज बोकर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।


5– सत्यता ही जिंदगी की राह है।

सत्य राही से प्रभु की चाह है।

सत्यता की एक अलग पहचान है।

सत्य से दमन छुड़ाकर क्या करोगे।

झूठ वाला जीत करके हंस रहा है।

सत्य का दीपक जाला कर क्या करोगे।

अपराध की दुनिया में रहकर क्या करोगे।

ना जी सकोगे सुकून से ना मर सकोगे।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 26, 2025

कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

 *राष्ट्रीय गीत* 

 *शीर्षक –कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।** 
बोल – कर चले हम फिदा.......* 

1–कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।
कुछ हमारा करम है वतन के लिए।
जिंदगी है मिली इस वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

2–जन्म भारत में है तो हम हैं भारती।
अपनी मां की उतारे सदा आरती।
मां की ममता का भी ध्यान रखना हमें।
अपनी क्षमता का भी ध्यान रखना हमें।
जिंदगी है मिली इस वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

3–उन शहीदों को दिल से नमन हम करें।
जिसने सीने पर खाई है वो गोलियां।
हंसते-हंसते लड़े हंसते-हंसते गए।
हंसते-हंसते दी सरहद पर कुर्बानियां।
उनका जीवन अमर है वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।

4–जिंदगी एक पल की अमानत यहां।
कौन कहता है ये मेरी जागीर है।
कौन सा पल है अंतिम किसे है पता।
कौन कहता है अपनी ये तकदीर है।
कुछ तो समझो जरा इस वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।
कुछ हमारा करम है वतन के लिए।

*ओम शांति** 
रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – हमारी बेटियां


1–ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


2– तू ही मां है तू बहन है तू ही घर की बेटियां। 

तू ही इज्जत तू ही दौलत तू ही घर की रोटियां।

तू ही दुर्गा तू भवानी तू कालिका आभास कर।

दानवों को इस धारा से तू ही इनका नास कर।

तू अपनी शक्ति का जरा एहसास कर है।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


3–आप से ही आश है संसार की।

आप से ही प्यार से संसार की।

आप से ही यह जहां है चल रहा।

आप से ममता भरी संसार की।

आप शक्ति हैं न खुद को निराश कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


4– दिन पे दिन यूं बढ़ रही है यातना।

शक्ति बनकर कर दो इनका खत्मा।

पापियों का नास करना है तुम्हें।

शक्ति का एहसास करना है तुम्हें।

चेतना का अब तुम आगाज कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


5–तुम हो शक्ति खुद की तू पहचान कर।

राम रावण की नजर पहचान कर।

तू ही सीताराम को वरमाल कर। 

रावणों की हर नजर पहचान कर।

लक्ष्मण रेखा को न अब तू लांघना।

सीता होकर राम की कर साधना।

अपनी मर्यादा का कुछ आभास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर। 



*ओम शांति**

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, November 24, 2025

शीर्षक –ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।


1–ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।

ये आंसू है हीरा इसे न गवाना।

ये नाटक की दुनिया से सबको है जाना।

किसी और का न तू दामन भिगोना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


2–अमर आत्मा तन का कपड़ा है बदला

वो आएगी फिर से ये पिंजरा है बदला।

नहीं याद कुछ भी रहेगा जमाना।

किसी का यहां पे नहीं है ठिकाना।

ठिकाना जहां है उसी को पिरोना। 

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


3–भले चाहे जितनी तू दौलत कमा ले।

ये बंगला और गाड़ी और शोहरत बना ले।

यही छोड़कर खाली हाथों हैं जाना।

नहीं काम आएगा कोई खजाना।

ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले हरि नाम लेना।


4–ये आंसू है मोती सदा मुस्कुराना।

समय आ गया तो चले ना बहाना।

ये आना और जाना तो दुनिया का खेला।

नहीं यूं आप रोना ना सब को रुलाना।

ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक –दो चार जन


1–जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हों किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।

बड़ी मुश्किल से ही दो-चार जन मिलते मोहब्बत से।

आपसी में रहे सद्भाव तो समझो ये किस्मत है।


2–एक ऐसा खिलौना हांथ में आया जो जादू है।

कर लिया अपने वश संसार को कैसा ये जादू है।

चाहे लड़का हो या लड़की हो चाहे बूढ़ा हो बच्चा।

आधा पागल हुआ संसार जाने कैसा ये जादू है।

 

3– आपसी प्यार अब संसार में बिखरा नजर आता।

नहीं बजती अब वो शहनाइयां घर के द्वारे में।

चार भाई का था परिवार संग एक साथ रहता था।

कहीं दिख जाए वो आलम तो समझो कि ये किस्मत है।


4–अगर मां-बाप घर में है उन्हें सम्मान मिलता है।

वही घर स्वर्ग है समझो बड़ी उनकी ये किस्मत है।

जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हो किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, November 20, 2025

*शीर्षक – बेटी घर की गहना।*

 

1– मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

जिस मात पिता ने पाला है। 

जिसकी आंखों का तारा है। 

जिस मात-पिता ने दिल का टुकड़ा माना।

उसको तुमने दुत्कार दिया।

जिसने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। 

उसको तुमने प्यार किया।

मैं मना तुमने प्यार किया।

पर कुछ तो सोच लिया होता।

श्रद्धा के 35 टुकड़े को आंखों से देख लिया होता।

यह मानव नहीं कसाई है।

जिससे तू प्रीत लगाई है।

मेरी बेटी मानो कहना

अब प्यार किसी से ना करना।

प्यार किसी से ना करना।


2–तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

ये प्यार नहीं है हत्यारों।

एक प्यार के नाम पर धोखा है।

ये प्यार तो दिल का सौदा है।

हिंदू मुस्लिम क्या होता है।

लेकिन हे गद्दारों तुमने

अपनी पहचान बताया है।

जिसने तुमको अपनाया है।

उसको तुमने दफनाया है।

कुछ तो डर गर इंसान तू है।

भगवान का ही ये कहना है।

तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।


3–जिनके घर में ये बेटी है।

उनके दिल में क्या होती है।

वह बाप तो पत्थर हो जाता।

मां चुपके चुपके रोती है।

ये आंसू शूप के मोती है।

दमन को रोज भिगोती है।

उनके दिल से कोई पूछे जिनके घर बेटी होती है।

बेटी इज्जत बेटी दौलत बेटी ही घर की गहना है।

बेटी कुछ तो तुम भी समझो ये मात पिता का कहना है।


4–कुछ तुमको पता नहीं बेटी ।

कैसे मैं तुमको पाला है।

मेरी आंखों में आंसू है।

न मुंह में एक निवाला है।

इस मात पिता को झटके से तूने यूं अपने दिल से निकाला है ।

अंजान मुसाफिर को तुमने अपना माना और प्यार किया 

उसके तेरे प्यार को न समझा टुकड़े टुकड़े कई बार किया।

ऐसे हैं दरिंदे अकल के अंधे।

उनसे बातें कभी नहीं करना अपनी इज्जत मां-बाप की इज्जत का तुम ध्यान सदा रखना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक –जब मैं जन्म लिया जग में



1–जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।

ननिहाल में अम्मा के नामो से यार मुझे पहचान गया।

स्कूल गया तो गुरु जी पूछे।

हमसे अम्मा बाबू का नाम।

जब उन्हें बताया नाम लिखाया।

तब मुझको पहचान गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


2– हम भले भुला दे पर हमको वह कभी नहीं बिसराते हैं।

मां बाप भले भूखे सोए।

बच्चों को पहले खिलाते हैं। 

है मात-पिता भगवान तुम्हारे 

भगवान को किसने देखा है।

बचपन से लेकर अंत समय तक

उन्होंने तुमको देखा है।

आज की संतानों की नजर में मां बाप को न पहचाना गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


3– अब नहीं रहा वह वक्त दिनों दिन गिरता गया समाज।

कहोगे किसको कौन सुनेगा।

किस पर करोगे ना नाज। 

आज की संतानों में खो गई मर्यादा की बातें।

कलयुग का है एक खिलौना जिसकी माने बातें।

मां बाप की एक नहीं सुनते रिश्ता जैसे बेगाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।


4–मोबाइल से रात दीना कितना करते हैं बातें। 

मोबाइल में दिन है गुजरता मोबाइल में राते 

बारह एक बजे सोते हैं उठाते हैं दस बारह।

आज की संतानों ने सूरज की किरणे नहीं निहारा।

इसलिए रोगी और भोगी दिन प्रतिदिन बनते हैं।

जहां भी देखो अस्पताल दिन रात खुला करते हैं।

भूलो नहीं अम्मा बाबू को नहीं तो पछताओगे।

जीवन नर्क बना डाला फिर स्वर्ग कहा से पाओगे।

यही सत्य हैं आज की पीढ़ी में देखो मनमाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।



       *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 19, 2025

**शीर्षक –क्या आसान है क्या मुश्किल है।*

 

1–अच्छा कर्म करें मानो मिट्टी बन जाए सोना।

कभी बुरे संकल्पों से भी बुरे बीज मत बोना।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 

उंगली गैरो पे उठाना तो आसान है। 

कोई हमपे उठाए मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।


2 अतिथि देवों भव दरवाजे पर पहले लिखा रहता था।

कुत्तों से रहो सावधान अब यही लिखा रहता है। 

चार कुत्तों को खिलाना आसान है।

मां-बाप को खिलाना मुश्किल है।

घर में कुत्तों को घुमाना आसान है।

एक गैया को चराना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



3–हिंदू धर्म की प्रथम निशानी चोटी सब रखते थे।

अब नए-नए सुंदर लड़के भी मौलाना सा बनते हैं।

मूल्ला मौलाना बन जाना तो आसान है।

सत्य पथ पर  चल पाना मुश्किल है।

सब की नकले उतारना आसान है। 

उनके कर्म को निभाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



4– राजनीति के गलियारे में ऊपर नीचे होती।

किसी का सिक्का चल जाता है।

किसी की लुटिया डूबी ।

राहुल गांधी बन जाना तो आसान है।

योगी मोदी बन पाना मुश्किल है।

सबको रास्ता बताना तो आसान है।

खुद को रास्ते को लाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसन है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 



*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, November 18, 2025

*शीर्षक –आप खुश तो रहो।*


1–कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।

क्या करोगे ये दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।


2– जिंदगी एक अमानत तुम्हें है मिली।

तुम इसे व्यर्थ में यूं गवाना नहीं।

जिंदगी चार दिन की विरासत भी है।

ये विरासत यहीं पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो 


3–आप हंसते रहो और हंसाते रहो।

भीड़ मेले की है ये चली जाएगी। 

मेले में जो मिले मुस्कुराते रहो।

ये घड़ी फिर दुबारा नहीं आएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।

 

4–हर सुबह एक नई जिंदगी है मिली।

कौन जाने कब शाम ढल जाएगी।

जो समय जा रहा है नहीं आएगा।

आखिरी शाम तेरी जरूर आएगी। 

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।


5–जिंदगी उस प्रभु की अमानत भी है।

इस अमानत में उनकी जमानत भी है ।

भूल कर अपनी दौलत समझना नहीं।

दोस्ती है जो पल में बिगड़ जाएगी।


कुछ रहे ना रहे आप खुश रहो। 

क्या करोगे यह दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर रह जाएगी।


 *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –ये जीवन चार दिन का*



1–ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।

पता तुझको नहीं होगा चार दिन बीत जाएगा।

तो हंस ले जिंदगी की हर घड़ी अनमोल है प्यारे।

तुम्हें हर पल हंसाने के लिए वो गीत गाएगा 

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


2–चार दिन के लिए इंसान यहां पर घर बना लेता।

और कहता है कि अपना है कुछ अपनों को बना लेता।

ये अपना घर और अपने लोग एक दिन छूट जाएगा।

जिसे कहता है अपना है वही यह गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


3– ना हो अनबन किसी से भी बहुत प्यारी ये दुनिया है।

सभी को मान लो अच्छा बहुत न्यारी ये दुनिया है।

मुसाफिर का ये खाना है किसी से बैर न रखना।

तुम्हें अंतिम विदाई में तुम्हारा मीत आएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


4–चार दिन का खिलौना एक पल में टूट जाना है।

तू अमर है खिलौना छोड़कर तुझको तो जाना है।

बहाना ना चलेगा जब बुलाने मीत आयेगा।

जब चल जाएगा तो यह जमाना गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


5–याद कर ले तू हर पल वो ही पल तेरे काम आएगा।

जो करना आज कर ले कल नहीं तेरे काम आएगा।

समय रुकता नहीं जीवन का हर पल बीत जाएगा।

आज हम जा रहे हैं कल हमारा मीत जाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


6–महल जिसमें तू रहता है सुना है दस दरवाजे हैं।

दसों में दस तरह की साज मलिक ने ही सजे हैं।

मैं मना है बहुत सुंदर महल पर है किराए का।

किराए का महल है एक दिन ये छूट जाएगा ।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक ––आप खुद में खुशी है अलग बात हैं।


1–आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली। 

आप हर पल खुशी है अलग बात है।


2–ये खुशी जिंदगी में झलकती भी है।

ये खुशी आंसुओं से छलकती भी है।

हाथ में गर तेरे हाथ उनका रहे।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी अलग बात है।


3– जिंदगी में खुशी प्रेम से है मिली।

प्रेम करके निभाना अलग बात है।

प्रेम तो अब खिलौना सा लगने लगा।

प्रेम में डूब जाना अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


4–ये खुशी एक सुंदर सहेली भी है।

ये खुशी जिंदगी की पहेली भी है।

जिंदगी में अगर साथ उनका मिले।

तू जिसे चाहता हाथ उनका मिले।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


5–आपकी जब खुशी के वो पल आयेंगे।

आप मन ही यूं मन में ही मुस्कायेगे।

आपसे कोई बातें करें ना करें।

आपकी उस खुशी की अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


6–आप अपने को फुर्सत से देखा करो।

अपने कर्मों की रेखा को देखा करो।

दूसरे पर नजर तो चली जाती है।

ये नजर खुद को देख अलग बात है।


आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली।

आप हर पल खुशी हैअलग बात है।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, November 17, 2025

*शीर्षक –कविता में कविता*


1– कविता मे कविता लिखी गई।

कविता में कविता पढ़ी गई।

कविता में कविता सुनी गई।

कविता ने कवि से बात कही।


2–ये कविता जिंदगी की हर घड़ी की राज है कविता।

ये कविता हर सुनहरी शाम की सरताज है कविता।

ये कविता आश है और पास है संन्यास है कविता।

ये कविता हर तड़पती आत्मा की प्यास है कविता।


3–ये कविता एक नदी की धार है और प्यार है कविता।

ये कविता एक उलझती नाव की मझधार है कविता।

ये कविता तार है विस्तार है सत्कार है कविता।

ये कविता एक छोटी सी कड़ी विस्तार है कविता।


4–ये कविता गीत है संगीत है एक छंद है कविता।

ये कविता राम की रामायण की एक अंग है कविता।

ये कविता जान है पहचान है एक शान है कविता।

ये कविता मुरलीधर की मुरली की पहचान है कविता।

 

5–ये कविता जो लिखा उस लेखनी की जान है कविता।

ये कविता मान मर्यादा का भी एक ध्यान है कविता। 

ये कविता मां बहन बेटी का भी एक नाम है कविता।

ये कविता के रचयिता के दिलों की प्राण है कविता।

ये कविता रेस है अवशेष है संदेश है कविता।

ये कविता आखिरी सांसों का भी एक शेष है कविता।

ये कविता ब्रह्मा भी है विष्णु है महेश है कविता।

एक कविता दिन दिवाकर दिनेश है और सुरेश है कविता।

 

        *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170