Wednesday, November 26, 2025

कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

 *राष्ट्रीय गीत* 

 *शीर्षक –कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।** 
बोल – कर चले हम फिदा.......* 

1–कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।
कुछ हमारा करम है वतन के लिए।
जिंदगी है मिली इस वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

2–जन्म भारत में है तो हम हैं भारती।
अपनी मां की उतारे सदा आरती।
मां की ममता का भी ध्यान रखना हमें।
अपनी क्षमता का भी ध्यान रखना हमें।
जिंदगी है मिली इस वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।

3–उन शहीदों को दिल से नमन हम करें।
जिसने सीने पर खाई है वो गोलियां।
हंसते-हंसते लड़े हंसते-हंसते गए।
हंसते-हंसते दी सरहद पर कुर्बानियां।
उनका जीवन अमर है वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।

4–जिंदगी एक पल की अमानत यहां।
कौन कहता है ये मेरी जागीर है।
कौन सा पल है अंतिम किसे है पता।
कौन कहता है अपनी ये तकदीर है।
कुछ तो समझो जरा इस वतन के लिए।
जिंदा रहना और मरना वतन के लिए।
कुछ हमारा धरम है वतन के लिए।
कुछ हमारा करम है वतन के लिए।

*ओम शांति** 
रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 
(प्रयागराज शंकरगढ़)
मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – हमारी बेटियां


1–ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


2– तू ही मां है तू बहन है तू ही घर की बेटियां। 

तू ही इज्जत तू ही दौलत तू ही घर की रोटियां।

तू ही दुर्गा तू भवानी तू कालिका आभास कर।

दानवों को इस धारा से तू ही इनका नास कर।

तू अपनी शक्ति का जरा एहसास कर है।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।


3–आप से ही आश है संसार की।

आप से ही प्यार से संसार की।

आप से ही यह जहां है चल रहा।

आप से ममता भरी संसार की।

आप शक्ति हैं न खुद को निराश कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


4– दिन पे दिन यूं बढ़ रही है यातना।

शक्ति बनकर कर दो इनका खत्मा।

पापियों का नास करना है तुम्हें।

शक्ति का एहसास करना है तुम्हें।

चेतना का अब तुम आगाज कर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर। 


5–तुम हो शक्ति खुद की तू पहचान कर।

राम रावण की नजर पहचान कर।

तू ही सीताराम को वरमाल कर। 

रावणों की हर नजर पहचान कर।

लक्ष्मण रेखा को न अब तू लांघना।

सीता होकर राम की कर साधना।

अपनी मर्यादा का कुछ आभास कर।

ऐ हमारी बेटियां जज्बात पर।

कुछ तो अपने आप से इंसाफ कर।

है दरिंदों की निगाहें यूं गलत।

तुम तो अपने आप को एहसास कर। 



*ओम शांति**

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, November 24, 2025

शीर्षक –ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।


1–ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।

ये आंसू है हीरा इसे न गवाना।

ये नाटक की दुनिया से सबको है जाना।

किसी और का न तू दामन भिगोना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


2–अमर आत्मा तन का कपड़ा है बदला

वो आएगी फिर से ये पिंजरा है बदला।

नहीं याद कुछ भी रहेगा जमाना।

किसी का यहां पे नहीं है ठिकाना।

ठिकाना जहां है उसी को पिरोना। 

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


3–भले चाहे जितनी तू दौलत कमा ले।

ये बंगला और गाड़ी और शोहरत बना ले।

यही छोड़कर खाली हाथों हैं जाना।

नहीं काम आएगा कोई खजाना।

ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले हरि नाम लेना।


4–ये आंसू है मोती सदा मुस्कुराना।

समय आ गया तो चले ना बहाना।

ये आना और जाना तो दुनिया का खेला।

नहीं यूं आप रोना ना सब को रुलाना।

ये आंसू गिरे न इसे थाम लेना।

ये आंसू के बदले प्रभु नाम लेना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक –दो चार जन


1–जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हों किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।

बड़ी मुश्किल से ही दो-चार जन मिलते मोहब्बत से।

आपसी में रहे सद्भाव तो समझो ये किस्मत है।


2–एक ऐसा खिलौना हांथ में आया जो जादू है।

कर लिया अपने वश संसार को कैसा ये जादू है।

चाहे लड़का हो या लड़की हो चाहे बूढ़ा हो बच्चा।

आधा पागल हुआ संसार जाने कैसा ये जादू है।

 

3– आपसी प्यार अब संसार में बिखरा नजर आता।

नहीं बजती अब वो शहनाइयां घर के द्वारे में।

चार भाई का था परिवार संग एक साथ रहता था।

कहीं दिख जाए वो आलम तो समझो कि ये किस्मत है।


4–अगर मां-बाप घर में है उन्हें सम्मान मिलता है।

वही घर स्वर्ग है समझो बड़ी उनकी ये किस्मत है।

जहां दो-चार जन एक साथ में बैठे हो किस्मत है।

सार्थक हो रही हो बात तो समझो ये किस्मत है।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, November 20, 2025

*शीर्षक – बेटी घर की गहना।*

 

1– मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

जिस मात पिता ने पाला है। 

जिसकी आंखों का तारा है। 

जिस मात-पिता ने दिल का टुकड़ा माना।

उसको तुमने दुत्कार दिया।

जिसने टुकड़े-टुकड़े कर डाला। 

उसको तुमने प्यार किया।

मैं मना तुमने प्यार किया।

पर कुछ तो सोच लिया होता।

श्रद्धा के 35 टुकड़े को आंखों से देख लिया होता।

यह मानव नहीं कसाई है।

जिससे तू प्रीत लगाई है।

मेरी बेटी मानो कहना

अब प्यार किसी से ना करना।

प्यार किसी से ना करना।


2–तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।

ये प्यार नहीं है हत्यारों।

एक प्यार के नाम पर धोखा है।

ये प्यार तो दिल का सौदा है।

हिंदू मुस्लिम क्या होता है।

लेकिन हे गद्दारों तुमने

अपनी पहचान बताया है।

जिसने तुमको अपनाया है।

उसको तुमने दफनाया है।

कुछ तो डर गर इंसान तू है।

भगवान का ही ये कहना है।

तुम अपनी घर की इज्जत हो। 

तुम ही अपने घर की गहना।


3–जिनके घर में ये बेटी है।

उनके दिल में क्या होती है।

वह बाप तो पत्थर हो जाता।

मां चुपके चुपके रोती है।

ये आंसू शूप के मोती है।

दमन को रोज भिगोती है।

उनके दिल से कोई पूछे जिनके घर बेटी होती है।

बेटी इज्जत बेटी दौलत बेटी ही घर की गहना है।

बेटी कुछ तो तुम भी समझो ये मात पिता का कहना है।


4–कुछ तुमको पता नहीं बेटी ।

कैसे मैं तुमको पाला है।

मेरी आंखों में आंसू है।

न मुंह में एक निवाला है।

इस मात पिता को झटके से तूने यूं अपने दिल से निकाला है ।

अंजान मुसाफिर को तुमने अपना माना और प्यार किया 

उसके तेरे प्यार को न समझा टुकड़े टुकड़े कई बार किया।

ऐसे हैं दरिंदे अकल के अंधे।

उनसे बातें कभी नहीं करना अपनी इज्जत मां-बाप की इज्जत का तुम ध्यान सदा रखना।

मेरी बेटी मेरी बहना कुछ तो मानो मेरा कहना।


*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक –जब मैं जन्म लिया जग में



1–जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।

ननिहाल में अम्मा के नामो से यार मुझे पहचान गया।

स्कूल गया तो गुरु जी पूछे।

हमसे अम्मा बाबू का नाम।

जब उन्हें बताया नाम लिखाया।

तब मुझको पहचान गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


2– हम भले भुला दे पर हमको वह कभी नहीं बिसराते हैं।

मां बाप भले भूखे सोए।

बच्चों को पहले खिलाते हैं। 

है मात-पिता भगवान तुम्हारे 

भगवान को किसने देखा है।

बचपन से लेकर अंत समय तक

उन्होंने तुमको देखा है।

आज की संतानों की नजर में मां बाप को न पहचाना गया।

जब मैं जन्म लिया जग में।


3– अब नहीं रहा वह वक्त दिनों दिन गिरता गया समाज।

कहोगे किसको कौन सुनेगा।

किस पर करोगे ना नाज। 

आज की संतानों में खो गई मर्यादा की बातें।

कलयुग का है एक खिलौना जिसकी माने बातें।

मां बाप की एक नहीं सुनते रिश्ता जैसे बेगाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।


4–मोबाइल से रात दीना कितना करते हैं बातें। 

मोबाइल में दिन है गुजरता मोबाइल में राते 

बारह एक बजे सोते हैं उठाते हैं दस बारह।

आज की संतानों ने सूरज की किरणे नहीं निहारा।

इसलिए रोगी और भोगी दिन प्रतिदिन बनते हैं।

जहां भी देखो अस्पताल दिन रात खुला करते हैं।

भूलो नहीं अम्मा बाबू को नहीं तो पछताओगे।

जीवन नर्क बना डाला फिर स्वर्ग कहा से पाओगे।

यही सत्य हैं आज की पीढ़ी में देखो मनमाना हुआ।

जब मैं जन्म लिया जग में।

बाबू के नाम से जाना गया।



       *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 19, 2025

**शीर्षक –क्या आसान है क्या मुश्किल है।*

 

1–अच्छा कर्म करें मानो मिट्टी बन जाए सोना।

कभी बुरे संकल्पों से भी बुरे बीज मत बोना।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 

उंगली गैरो पे उठाना तो आसान है। 

कोई हमपे उठाए मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।


2 अतिथि देवों भव दरवाजे पर पहले लिखा रहता था।

कुत्तों से रहो सावधान अब यही लिखा रहता है। 

चार कुत्तों को खिलाना आसान है।

मां-बाप को खिलाना मुश्किल है।

घर में कुत्तों को घुमाना आसान है।

एक गैया को चराना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



3–हिंदू धर्म की प्रथम निशानी चोटी सब रखते थे।

अब नए-नए सुंदर लड़के भी मौलाना सा बनते हैं।

मूल्ला मौलाना बन जाना तो आसान है।

सत्य पथ पर  चल पाना मुश्किल है।

सब की नकले उतारना आसान है। 

उनके कर्म को निभाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसान है।



4– राजनीति के गलियारे में ऊपर नीचे होती।

किसी का सिक्का चल जाता है।

किसी की लुटिया डूबी ।

राहुल गांधी बन जाना तो आसान है।

योगी मोदी बन पाना मुश्किल है।

सबको रास्ता बताना तो आसान है।

खुद को रास्ते को लाना मुश्किल है।

बीज कर्मों का बोना तो आसन है।

कर्म का फल चुकाना मुश्किल है। 



*ओम शांति** 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, November 18, 2025

*शीर्षक –आप खुश तो रहो।*


1–कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।

क्या करोगे ये दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।


2– जिंदगी एक अमानत तुम्हें है मिली।

तुम इसे व्यर्थ में यूं गवाना नहीं।

जिंदगी चार दिन की विरासत भी है।

ये विरासत यहीं पर ही रह जाएगी।

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो 


3–आप हंसते रहो और हंसाते रहो।

भीड़ मेले की है ये चली जाएगी। 

मेले में जो मिले मुस्कुराते रहो।

ये घड़ी फिर दुबारा नहीं आएगी।

कुछ रहे न रहे आप खुश तो रहो।

 

4–हर सुबह एक नई जिंदगी है मिली।

कौन जाने कब शाम ढल जाएगी।

जो समय जा रहा है नहीं आएगा।

आखिरी शाम तेरी जरूर आएगी। 

कुछ रहे ना रहे आप खुश तो रहो।


5–जिंदगी उस प्रभु की अमानत भी है।

इस अमानत में उनकी जमानत भी है ।

भूल कर अपनी दौलत समझना नहीं।

दोस्ती है जो पल में बिगड़ जाएगी।


कुछ रहे ना रहे आप खुश रहो। 

क्या करोगे यह दौलत नहीं जाएगी।

आपसे जो मिले मुस्कुराते रहो।

सब धरा का धरा पर रह जाएगी।


 *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –ये जीवन चार दिन का*



1–ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।

पता तुझको नहीं होगा चार दिन बीत जाएगा।

तो हंस ले जिंदगी की हर घड़ी अनमोल है प्यारे।

तुम्हें हर पल हंसाने के लिए वो गीत गाएगा 

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


2–चार दिन के लिए इंसान यहां पर घर बना लेता।

और कहता है कि अपना है कुछ अपनों को बना लेता।

ये अपना घर और अपने लोग एक दिन छूट जाएगा।

जिसे कहता है अपना है वही यह गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


3– ना हो अनबन किसी से भी बहुत प्यारी ये दुनिया है।

सभी को मान लो अच्छा बहुत न्यारी ये दुनिया है।

मुसाफिर का ये खाना है किसी से बैर न रखना।

तुम्हें अंतिम विदाई में तुम्हारा मीत आएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


4–चार दिन का खिलौना एक पल में टूट जाना है।

तू अमर है खिलौना छोड़कर तुझको तो जाना है।

बहाना ना चलेगा जब बुलाने मीत आयेगा।

जब चल जाएगा तो यह जमाना गीत गाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


5–याद कर ले तू हर पल वो ही पल तेरे काम आएगा।

जो करना आज कर ले कल नहीं तेरे काम आएगा।

समय रुकता नहीं जीवन का हर पल बीत जाएगा।

आज हम जा रहे हैं कल हमारा मीत जाएगा।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


6–महल जिसमें तू रहता है सुना है दस दरवाजे हैं।

दसों में दस तरह की साज मलिक ने ही सजे हैं।

मैं मना है बहुत सुंदर महल पर है किराए का।

किराए का महल है एक दिन ये छूट जाएगा ।

ये जीवन चार दिन का है चार दिन बीत जाएगा।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक ––आप खुद में खुशी है अलग बात हैं।


1–आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली। 

आप हर पल खुशी है अलग बात है।


2–ये खुशी जिंदगी में झलकती भी है।

ये खुशी आंसुओं से छलकती भी है।

हाथ में गर तेरे हाथ उनका रहे।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी अलग बात है।


3– जिंदगी में खुशी प्रेम से है मिली।

प्रेम करके निभाना अलग बात है।

प्रेम तो अब खिलौना सा लगने लगा।

प्रेम में डूब जाना अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


4–ये खुशी एक सुंदर सहेली भी है।

ये खुशी जिंदगी की पहेली भी है।

जिंदगी में अगर साथ उनका मिले।

तू जिसे चाहता हाथ उनका मिले।

जिंदगी जीने की फिर अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


5–आपकी जब खुशी के वो पल आयेंगे।

आप मन ही यूं मन में ही मुस्कायेगे।

आपसे कोई बातें करें ना करें।

आपकी उस खुशी की अलग बात है।

आप खुद में खुशी है अलग बात है।


6–आप अपने को फुर्सत से देखा करो।

अपने कर्मों की रेखा को देखा करो।

दूसरे पर नजर तो चली जाती है।

ये नजर खुद को देख अलग बात है।


आप खुद में खुशी है अलग बात है।

आपसे सब खुशी है अलग बात है।

जिंदगी कुछ समय के लिए है मिली।

आप हर पल खुशी हैअलग बात है।


ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Monday, November 17, 2025

*शीर्षक –कविता में कविता*


1– कविता मे कविता लिखी गई।

कविता में कविता पढ़ी गई।

कविता में कविता सुनी गई।

कविता ने कवि से बात कही।


2–ये कविता जिंदगी की हर घड़ी की राज है कविता।

ये कविता हर सुनहरी शाम की सरताज है कविता।

ये कविता आश है और पास है संन्यास है कविता।

ये कविता हर तड़पती आत्मा की प्यास है कविता।


3–ये कविता एक नदी की धार है और प्यार है कविता।

ये कविता एक उलझती नाव की मझधार है कविता।

ये कविता तार है विस्तार है सत्कार है कविता।

ये कविता एक छोटी सी कड़ी विस्तार है कविता।


4–ये कविता गीत है संगीत है एक छंद है कविता।

ये कविता राम की रामायण की एक अंग है कविता।

ये कविता जान है पहचान है एक शान है कविता।

ये कविता मुरलीधर की मुरली की पहचान है कविता।

 

5–ये कविता जो लिखा उस लेखनी की जान है कविता।

ये कविता मान मर्यादा का भी एक ध्यान है कविता। 

ये कविता मां बहन बेटी का भी एक नाम है कविता।

ये कविता के रचयिता के दिलों की प्राण है कविता।

ये कविता रेस है अवशेष है संदेश है कविता।

ये कविता आखिरी सांसों का भी एक शेष है कविता।

ये कविता ब्रह्मा भी है विष्णु है महेश है कविता।

एक कविता दिन दिवाकर दिनेश है और सुरेश है कविता।

 

        *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केशरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।*


1–किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

ये दुनिया है कोई सम्मान देगा तो भी अच्छा है।

ये दुनिया है कोई अपमान देगा तो भी अच्छा है।

मान सम्मान और अपमान सब कुछ तुम समा लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना। 


2–ये दुनिया में सभी इंसान एक मेहमान जैसा है।

कोई गोरा कोई कला है तो इंसान जैसा है।

आदमी–आदमी के काम में आ जाए तो अच्छा।

अगर अच्छा नहीं करना बुरा भी यार मत करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी का गफलत नहीं करना।


3–ये दुनिया में अगर आए हो तो कुछ तो सहन करना ।

बुराई जो हमारे दिल में है उसको दहन करना।

मिले कुछ क्षण तुम्हे परमात्मा का तुम मनन करना।

सहन करना दहन करना मनन करना ही जीवन है।

अगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है कर जिंदगी जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना कभी नहीं करना मिली है।


4– आखरी सांस तक इंसान उम्मीदों में जीता है।

किसी का प्यार पाता है किसी का विष भी पीता है।

मगर इंसान अपनी जिंदगी को हंस के जीता है।

है जीवन आपका हंसकर के जीवन पार कर लेना।

कभी फुर्सत मिले परमात्मा का जाप कर लेना।

मगर तुम प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।

मिली है चार दिन की जिंदगी गफलत नहीं करना।

किसी से प्यार मत करना तो नफरत भी नहीं करना।


     *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद्र केसरवानी*

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Sunday, November 16, 2025

**शीर्षक – नैय्या भव से पार*


1–शांत चित सद्भावना का भाव हो।

नम्र चित और नम्रता का स्वभाव हो।

हो सुसज्जित शब्द में शुभभवना। 

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।


2–भावना में भाव हो प्रतिराष्ट्र कि। 

धर्म हो और धारणा हो शास्त्र की।

कर्म के प्रति प्यार हो परमार्थ की।

लोभ मन में ना भारी हो स्वार्थ की।

जगृति हो जागरण का सार हो।

तब यह नैय्या भव से बेड़ा पार हो। 

शांत चित सद्भावना का भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।

 

3–हो भरी करुणा यह मानव जन्म है।

पूर्व जन्मों का पुण्य का कर्म है।

सत्य पथ पर हम चले यह धर्म है।

धर्म की ही धारणा शुभ कर्म है।

सत्य पथ पर हम चले सद्भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।

शांत चित्र सद्भावना का भाव हो।

तब ये नैय्या भव से बेड़ा पार हो।



      *ओम शांति* 

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी*

 (प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Saturday, November 15, 2025

*शीर्षक – जीवन की भाग दौड़*


1–बड़ी भाग है, इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत।

न पूछो कि इनसे कहां जा रहे हैं।

न तन की खबर है, न मन की खबर है।

ना दुनिया की कोई जतन की खबर है।

नहीं कुछ पता है न दर न ठिकाना,

जिधर मन ने मोड उधर जा रहे हैं। 

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी।

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


2–है भुला ये राही मगर इनसे पूछो की।

ए मेरे भाई कहां जा रहे हो, 

तो फट से फलक से यूं हंस के कहेंगे।

ना पूछो कि मुझसे कहां जा रहे हैं। 

बड़ी दौड़ है ना है पल भर की फुर्सत

न पूछो कि हमसे कहां जा रहे हैं। 


3–ये माया की नगरी है कैसी बजरिया।

यहां जो भी आया वो भुला डागरिया।

हु में कौन आया कहां से ना मालूम। 

है जाना कहां और कहां जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में इधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं


4– परेशान है दुख में डूबा है आलम 

नजर को झुकाए चले जा रहे हैं।

नजर जब किसी की नजर से है मिलती।

तो झूठी हंसी में हंसी जा रहे हैं।

हकीकत का कुछ भी पता तक नहीं है।

दिखावे में यूं ही हंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी,

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


5– हकीकत का मंजर नहीं कुछ समझते।

है माया के दलदल में दिन-रात फसते। 

हैं होशियार इतना की बातें न करना।

यूं मुंह को दबाए हंसे जा रहे हैं। 

हंसी भी बनावट खुशी भी बनावट।

बनावट में यूं ही फंसे जा रहे हैं।

बड़ी भाग है इस जहां में जिधर भी 

नजर को घुमाओ चले जा रहे हैं।


         *ओम शांति* 

रचनाकार *–सुरेश चंद्र केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Friday, November 14, 2025

*शीर्षक–अजब दुनियां का दस्तूर*

 

1–अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।

सोया पड़ा कोई खोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

लड़ते झगड़ते नहीं चैन पल का।

मरे जा रहे हैं नहीं ज्ञान कल का।

है पल भर का जीवन संजोया पड़ा है।

कोई रात दिन देखो रोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


2–अपना ही अपना संजोया पड़ा है।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है।

संजोने में दिन-रात यूं मर रहे हैं। 

नहीं कुछ पता है कि क्या कर रहे हैं।

जो मन कह दिया वो ही बोया पड़ा है ।

मुकद्दर को अपने वो धोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


3– नहीं कुछ खुशी है, नहीं कुछ है आशा ।

जिधर भी वो जाता है मिलती निराशा।

भटकता है दर-दर कभी जाता मंदिर।

कभी जाकर मस्जिद में धरता है माथा।

नहीं फिर भी मिलता सुकून अपने दिल को।

वो किस्मत को अपने भिगोया पड़ा है।

अजब हाल देखा यह इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


4– कहो कुछ तो कहते हैं मुझसे भला कौन ।

होशियार होगा भला इस जहां में।

यह माया की छाया में घर को है भूले।

परम शिव पिता को भी दिल से है भूले, 

वो माया की दुनिया में सोया पड़ा है।

किस्मत को अपने भी खोया पड़ा है।

अजब हाल देख यहां इस जहां का।

यहां देखा कोई तो सोया पड़ा है।


     *ओम शांति* 

रचनाकार– *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*शीर्षक –अर्पण समर्पण से सुखधाम*


1–अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।

करू प्यार सबसे मै दर्पण बनू तो।

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो।

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


2–मिला तन ये मानव का हु भाग्यशाली। 

गुरु ज्ञान से शिक्षा कुछ हमने पाली।

गुरु ज्ञान सागर का दर्शन करूं तो।

गुरु का ये जीवन में एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करू तो 

जहां में हमारा भी सम्मान होगा ।


3–प्रथम ज्ञान मां के चरण आचरण से ।

मां के ही आंचल से आया हूँ रण में ।

समर में अगर मैं विजय हो गया तो ।

ये मां की दुआओं का एहसान होगा।

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो

जहां में हमारा भी सम्मान होगा।


4– अमर आत्मा है यह तन है विनाशी।

अमर है तेरे कर्म की जो है राशि ।

मिटा ना सकेंगे ये कर्मों की रेखा।

तुम्हारे जिगर में जो अरमान होगा।

करू प्यार सबसे में दर्पण बनू तो 

यूं अर्पण समर्पण से सुखधाम होगा 

अगर मन प्रभु प्रति समर्पण करूं तो।

जहां में हमारा सम्मान होगा ।

      *ओम शांति*

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* (प्रयागराज शंकरगढ़) 

मोबाइल नंबर –9919245170

Thursday, November 13, 2025

*शीर्षक – स्वार्थी इंसान*


1–आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वह किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है।

राजसी हो ठाठ वह सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


2–प्रेम की भाषा नहीं है प्रेम पाना चाहता है।

नेह परिभाषा नहीं स्नेह पाना चाहता है।

आज का इंसान कितना स्वार्थी है, स्वार्थ में

दूसरे के धन से दाता दान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।


3–भावना सद्भावना से दूर है ।

भाव का भंडार पाना चाहता है।

सत्यता की राह से गुमराह है। 

सत्य का विस्तार लाना चाहता है।

क्या करें आदत से वह मजबूर है। 

फिर भी वह खुशहाल होना चाहता है ।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है।


4– दूरियां दिल में है मन में प्यास है 

सबका वह विश्वास पाना चाहता है।

द्वेष नफरत से भरी है जिंदगी ।

फिर भी सबक खास होना चाहता है।

आज का हर आदमी खुशहाल होना चाहता है ।

वो किसी भी हाल मालामाल होना चाहता है। 

राजसी हो ठाठ वो सम्मान होना चाहता है।

हर सभा में मान प्रतिभावान होना चाहता है ।


          *ओम शांति* 

रचनाकार – *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – मानव की परिभाषा



1– ज्यादातर गैर की बातों में बुद्धि को खापाया करते हैं ।

यह ऐसा है, वह ऐसा है।

हम यही बताया करते हैं।

अपने को अच्छा उन्हें बुरा,

यह सोच नजर में रहती है।

यह सोच गलत है खुद से पूछो,

उल्टी गंगा बहती है।

दिन-रात विचार चले उल्टा,

क्या यही ज्ञान की भाषा है।

परीचिंतन में जीवन बीते,

क्या मानव की परिभाषा है।


2– कैसे समाज समृद्ध बने

संगठन हमारा अच्छा हो।

हर वर्ग हमारे साथ रहे ।

हो वृद्ध युवा व बच्चा हो ।

हो सबका हित जनहित अच्छा हो।

ये समाज खुशहाल रहे ।

सद्भाव रहे हर प्रतिपल अपना,

संगठन रहे परिवार रहे।

बस यही भावना दिल में हो ,

बस यही मेरी जिज्ञासा है ।

सबके प्रति प्यार भरा हो दिल में,

मानव की परिभाषा है।

यह मानव की परिभाषा है।


3– शुभ चिंतन हो शुभ भाव रहे।

मन में न किंचित भाव रहे ।

ना मेरा हो ना तेरा हो।

एक दूजे से कुछ प्यार रहे ।

संगठन रहे तो शक्ति हो।

मानव में कुछ तो भक्ति हो ।

भावना हमारी स्वच्छ रहे ।

बस मन में यही अभिलाषा है।

संगठन एकता बनी रहे ,

यह मानव की परिभाषा है ।

यह मानव की परिभाषा है।


       *ओम शांति**

रचनाकार – *सुरेश चंद्र केशेरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Wednesday, November 12, 2025

*शीर्षक –घर जाना बहुत जरूरी है।*


1–जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे।

तो खाना बहुत जरूरी है ।

वैसे मन बुद्धि स्वच्छ रहे ।

प्रभु गुण गाना बहुत जरूरी है। 

आए हैं मुसाफिर खाने में।

क्यों सोच रहे हो जाने में।

आखिर एक दिन इस दुनिया से 

घर जाना बहुत जरूरी है।

जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे ।

तो खाना बहुत जरूरी ।


2–वैसे कुछ दिन के बाद यहां

दस्तूर निभाए जाते हैं ।

शोहरत दौलत को देखकर ही

व्यवहार निभाए जाते हैं।

कुछ सब्र करो सब कहते हैं ।

कुछ चीख चीख चिल्लाते हैं।

56 प्रकार का भोज छोड़कर पशु का मांस ये कहते हैं ।

यह मानव है या दानव है।

उनके ही बीच में रहना है।

यहां सत्य असत्य का मेला है।

कब तक इन सब को सहना है।

मानव स्वभाव को सतोगुड़ी में लाना बहुत जरूरी है।

आखिर एक दिन इस दुनिया से घर जाना बहुत जरूरी है। 

जैसे शरीर यह स्वस्थ रहे तो खाना बहुत जरूरी है।


3–कहीं हसरत पुरानी है।

 कहीं नजरे रूहानी है।

कहीं दीदार होता है ।

कहीं इनकार होता है।

हमारे आखिरी मेले में तुम मेहमान बन आना।

आज हम जा रहे एक दिन तुम सबको भी है जाना।


 *ओम शांति* 

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

*कल तो आता नहीं काल आ जायगा*


1– ये जो आज है यही आज काल हो जाएगा।

जब काल हो जाएगा तो भूतकाल  हो जाएगा।

हमलोग भविष्य की बातें किया करते हैं।

भविष्य की बाते न करे ।

भविष्य किसी ने देखा नहीं।

जो करना है कर लो आज नहीं काल आ जाएगा।

कल तो आता नहीं  काल आ जाएगा। 


2–हम लोग भविष्य के लिए कुछ काम किया करते हैं।

वर्तमान की इच्छाओं को कम करके इंतजाम किया करते हैं। 

अगर आज अच्छा है तो कल तुम्हारा अच्छा ही रहेगा 

कल की अगर सोचेंगे तो काल आ जाएगा।

जो करना है कर लो आज नहीं तो काल आ जाएगा 

कल तो आता नहीं काल जाएगा।


3–  बीज नफरत का जीवन में बोना नहीं ।

प्रेम सबसे करो पल में रोना नहीं।

जानता हूं चढ़ाई है कर्मों कि ये 

आप चलते रहो ढाल आ जाएगा।

करना है जो करो आज ही तुम करो।

कल तो आता नहीं काल आ जाएगा ।


4–आजकल आजकल यह भी करना नहीं ।

कौन जाने कहां काल आ जाएगा। 

हर सुबह की किरण देखते-देखते दोपहर आएगा शाम आ जाएगा।

एक-एक दिन महीने गुजरते रहे एक दिन फिर नया साल आ जाएगा ।

करना है जो करो आज ही तुम करो।

कल तो आता नहीं काल आ जाएगा।


       ओम शांति*

 रचनाकार– *सुरेश चंद्र केसरवानी*

( प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Tuesday, November 11, 2025

*शीर्षक – बेगमपुर का बादशाह*



1–जिनका गंभीरता और सरलता का स्वभाव होता है।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।

चेहरा कोई बनावटी नहीं नजरें भी नूरानी है।

आत्म चिंतन का बोध है। 

ज्ञान भी रूहानी है ।

ऐसी पवित्र आत्मा का जीवन बेमिसाल होता है ।

वो सदा मुस्कुराता रहता है।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।


2–जिनमें दिव्यता और मधुरता की खान होती है।

उनकी एक अलग पहचान होती है।

उनमें प्रेम और सद्भावना होती है।

उनके हृदय में सर्वप्रति शुभकामना होती है।

वो इस समाज का मसीहा और शहंशाह होता है।

उसे किसी बात का गम नहीं ।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।

जो सादा मुस्कुराता रहता है ।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।


3–जिनमें सहनशीलता का भाव होता है।

वह दिल से बड़ा उदार होता है।

वाणी में मधुरता दिल में प्रेम का भाव होता है।

वो बड़ा ही नर्मचित और आदर्श का स्वभाव होता है।

वह सब की नजरों में सम्मान पाते हैं।

रूहानी मुस्कान में सदा मुस्कुराते हैं ।

उनके मस्तक में लाइट और माइंट का ताज होता है।

ऐसी महान आत्मा हर पल मालामाल होता है ।

वो सदा मुस्कुराता रहता है।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।

जिनका गंभीरता और सरलता का स्वभाव होता है।

वो बेगमपुर का बादशाह होता है।


 *ओम शांति* 

रचनाकार– *सुरेश चंद केसरवानी* 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

शीर्षक – पछतावे में क्या जीना




1–जिंदगी पछतावे में क्या जीना।

किसी के दिखावे में क्या जीना।

जिंदगी एक प्रेम की मूरत है।

नफरत के साए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


2– जिंदगी एक प्रेम का कच्चा घड़ा है।

ना कोई दुनिया में छोटा बड़ा है।

जब से जाना यह जीवन का घड़ा किराए का।

चलो घर हम चले किराए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


3–आज जिस रास्ते में हम खड़े हैं।

कहीं पानी कहीं पत्थर पड़े हैं।

हौसला है तो पार होना है।

जख्म इन आंसुओं से क्या सीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।


4–जिसको देखो उदास बैठा है।

जिंदगी से निराश बैठा है।

यही अज्ञानता में जीना है।

इसी का नाम विष पीना है।

विष के साए में क्या जीना।

जिंदगी पछतावे में क्या जीना।

किसी के दिखावे में क्या जीना।

जिंदगी एक प्रेम की मूरत है। 

नफरत के साए में क्या जीना।  

 

     ओम शांति* 

कवि –सुरेश चंद्र केसरवानी 

(प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर – 9919245170

Monday, November 10, 2025

*शीर्षक– किसी भी समस्या का रोना हल नहीं है।*


1– किसी भी समस्या का रोना हल नहीं है।

शारीरिक सुंदरता का सोना हल नहीं है। 

वाणी में हो मधुरता नैनों में नम्रता हो।

जो करना हो कर लो आज जीवन में कल नहीं है।

किसी भी समस्या का रोना हल नहीं है। 

2 – दुनिया बहुत बड़ी है।

लाखों यहां धनी है।

चढ़ जाओ चाहे जितना ऊंचा

आना तो फिर जमी है।

अब लोग चंद्रमा पर जमीं तलाशते हैं।

बुद्धि विवेक खोना इसमें कोई हल नहीं है।

किसी भी समस्या का रोना हल नहीं है। 

शारीरिक सुंदरता का सोना हल नहीं।

3– प्यार–प्यार तो हम इंसान हैं इंसान से किया करते हैं।

प्यार तो हम पत्थरों के भगवान से किया करते हैं।

मगर कुछ इंसान यहां इस प्यार को बदनाम किया करते हैं।

जिस इंसान में पवित्रता का नाम तक नहीं है।

उस इंसान का गंगा में हांथ धोना हल नहीं है।

किसी भी समस्या रोना हल नहीं है। 

शारीरिक सुंदरता का सोना हल नहीं है।

वाणी में हो मधुरता नैनों में नम्रता हो।

जो करना कर लो आज जीवन में कल नहीं है।

4– दशानन थे तीन भाई तीनों विवेक पाई।

रावण ने अपनी लंका को सोने से जड़ाई।

विभीषण ने राम को ही अपना सोना चुन लिया है।

कुंभकरण जैसा सोना भी जीवन का हल नहीं है।

किसी भी समस्या रोना हल नहीं है।

शारीरिक सुंदरता का सोना हल नहीं है।

वाणी में हो मधुरता नैनों में नम्रता हो। 

जो करना हो कर लो आज जीवन में कल नहीं है।

        *ओम शांति* 

कवि– *सुरेश चंद्र केसरवानी* (प्रयागराज शंकरगढ़)

मोबाइल नंबर –9919245170

Sunday, November 9, 2025

*शीर्षक – दीवारें चार होती है*

 

 दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है

 यू बातें चार होती हैं मगर सच एक होता है 

पहुंचना है अगर मंजिल में चाहे हम जिधर भटके मगर सचखंड की दुनिया का पथ भी एक होता है दीवारें चार होती हैं मगर छत एक होता है 

आज उलझा हुआ इंसान है झूठी पहली में 

कोई उलझा हुआ है दोस्त में कोई सहेली में 

नहीं बजती किसी के घर में अब सुख चैन की बंसी

 क्योंकि हर घर में एक दूजे से यूं मतभेद होता है

  दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है

 आज इंसान भल इंसान से क्यों दूर होता है 

सगा भाई सगे भाई से क्यों दूर होता है 

भरी दुर्भावना इंसान में है कूटकर भीतर 

यही कारण बेटा मां बाप से भी दूर होता है

 दीवारें चार होती है मगर छत एक होता है 

आज यूं मर रहा इंसान रातों दिन कमाता है

 मगर फैशन की दुनिया में नहीं संतोष पता है 

उलझ  जाता है जब अपने ही कुछ उल्टे विचारों में 

वही इंसान फिर इंसान से हैवान होता है 

दीवारें चार होती हैं मगर छत एक होता है

 यूं बातें चार होती है मगर सच एक होता है

 पहुंचना है अगर मंजिल में चाहे हम जिधर भटके 

मगर सचखंड की दुनिया का पथ भी एक होता है 

दीवारें चार होती हैं मगर सच एक होता है

          ओम शांति* 

कवि –सुरेश चंद्र केसरवानी  (प्रयागराज शंकरगढ़) 

मोबाइल नंबर– 9919245170

Friday, November 7, 2025

*शीर्षक जिंदगी का सफर*


जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए 

भले हमसे है वो नाराज  हम ही बोल देते हैं

 बंद है प्यार की खिड़की जुबा भी बंद है उनके 

आज हम प्रेम की  खिड़की को फिर से खोल देते हैं हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

चलो अच्छा हुआ कुछ दूरियां थी पर वह अपने हैं 

मैं अपनापन दिखाकर आज उनसे बोल देते हैं

 मिटाकर दूरियां दिल की मोहब्बत की निगाहों से 

आज हम दिल का रिश्ता दिल से फिर यूं जोड़ लेते हैं हम ही बोल देते हैं

 जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं

 हमें सब कुछ पता है जिंदगी की नाव कागज की 

चलो हम ज्ञान गंगा की नदी में छोड़ देते हैं 

लगेगी या किनारे या भंवर में डूब जाएगी

 यह धारा है बहुत गहरी लहर भी खूब आएगी

 मगर चिंता नहीं पतवार है प्रभु के ही हाथों में 

उन्हीं के नाम से इस नाव को हम छोड़ देते हैं हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे हैं वो नाराज हम ही बोल देते हैं 

कौन देखा है कल की बात हम परसों की करते हैं 

यही अज्ञानता है बात हम बरसों की करते हैं 

मगर हम जानते हैं जिंदगी पल भर का खेला है यह मेला है झमेला है मगर सुंदर ये मेंला है

 इसी मेले में उनसे आज हम कुछ बोल देते हैं

 भले हमसे हैं वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

जिंदगी कब कहां रुक जाएगी विश्राम के लिए भले हमसे है वह नाराज हम ही बोल देते हैं 

        *ओम शांति* 

 रचनाकार – सुरेश चंद्र केशरवानी (प्रयागराज शंकरगढ़)

Tuesday, November 4, 2025

चीखना और चिल्लाना नहीं चाहिए - कवी सुरेश चंद्र केसरवानी



चीखना और चिल्लाना नहीं चाहिए ।
किसी का दिल दुखाना नहीं चाहिए। 
अपनी भी एनर्जी व्यर्थ में गवाना नहीं चाहिए।
बे मौसम की बरसात में नहाना नहीं चाहिए।।
आपसी टकरार को बढ़ाना नहीं चाहिए।
किसी की हालत पर मुस्कुराना नहीं चाहिए। 
दुख:हर्ता सुख कर्ता एक परमात्मा है। 
उनसे कोई राज छिपाना नहीं चाहिए।
चीखना और चिल्लाना नहीं चाहिए।
किसी का दिल दुखाना नहीं चाहिए। 
अपनी भी एनर्जी व्यर्थ में गवना नहीं चाहिए।
और बेवजह मुस्कुराना नहीं चाहिए।
हम जहाँ पर है , जिस स्थिति में है यही सत्य है।
यही मेरा परिवार है ,यही खेल है। 
क्योंकि कल्प कल्पान्तर का यह मेल है ।
अपने कर्मों का दोषार्पण किसी पे लगाना नही चाहिए। 
चीखना और चिल्लाना नहीं चाहिए।
किसी का दिल दुखाना नहीं चाहिए ।
अपनी भी एनर्जी व्यर्थ में गवना नहीं चाहिए।
बे मौसम की बरसात में नहाना नहीं चाहिए।।
कुछ लोग कह रहे हैं, जिंदगी बहुत बड़ी है।
भगवान का रहा है, जिंदगी एक सांस की लड़ी है।
कुछ लोग कह रहे हैं, जिंदगी तो एक घड़ी है ।
भगवान कह रहा है, उस घड़ी की सेकंड वाली सुई की छड़ी है ।
कितना व्यर्थ में सोचेगा, कितना तू कमाएगा । 
स्थूल धन कमाएगा , मिट्टी में मिल जाएगा । 
शरीर को सजाएगा, व्यर्थ में चला जाएगा । 
जो भी तुम्हारे पास है, सब भगवान की अमानत है ।
किसी की अमानत को अपना बताना नहीं चाहिए । 
चीखना और चिल्लाना नहीं चाहिए ।
किसी का दिल दुखाना नहीं चाहिए ।
अपनी भी एनर्जी व्यर्थ में गवना नहीं चाहिए ।
बे मौसम की बरसात में नहाना नहीं चाहिए ।।

लेखक : कवी सुरेश चंद केसरवानी ,  
        प्रयागराज, शंकरगढ़



दो रोटी दोपहर को खाता दो ही रोटी शाम को - सुरेश चंद्र केसरवानी




 दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

फिर भी माया के चक्कर में भूल गया तू राम को

सोच जरा इस जग में बंदे आए थे किस काम को

जिसने तुम्हें जहां में भेजा भूल गया उस राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

जिस को अपना तू समझता है

जिस पे तू रात दिन मारता है

ये तो कजग के टुकड़े है

ना आए तेरे काम को

क्यूँ भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

 

 

जिस देंह पे नातू करता है

वो तो मिट्टी का ढेला है

जिसको अपना तू समझता है

कुछ पल के लिए ये मेला है

वह पल भी तुझको पता नहीं

कब जाएगा विश्राम को

क्यों भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

अब गफलत मत कर जीवन से

चलना है निज धाम को

अब रहना नहीं किराए के घर में

चलना है अपने धाम को

अब सुबह शाम तू सुमिर ले बंदे

एक प्रभु श्री राम को

क्यों भूल गया तू राम को

दो रोटी दोपहर को खाता

दो ही रोटी शाम को

फिर भी माया के चक्कर में भूल गया तू राम को


लेकखसुरेश चंद्र केसरवानी (प्रयागराज)